"You have your way. I have my way. As for the right way, the correct way, and the only way, it does not exist."
Friedrich Nietzsche

Thursday, June 10, 2010

दिनचर्या (धूमिल की कविता )

सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा,
हम बुझी हुई बत्तियों को
इकट्ठा करेंगे और
आपस में बांट लेंगे.

दुपहर जब कहीं बर्फ नहीं होगी
और न झड़ती हुई पत्तियाँ
आकाश नीला और स्वच्छ होगा
नगर क्रेन के पट्टे में झूलता हुआ
हम मोड़ पर मिलेंगे और
एक दूसरे से ईर्ष्या करेंगे.

रात जब युद्ध एक गीत पंक्ति की तरह
प्रिय होगा हम वायलिन को
रोते हुए सुनेंगे
अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे
दुःखी होंगे.

Sunday, June 6, 2010

धूमिल की कविता

धूमिल कुछ ऐसे लोगो में से है जिनके द्वारा लिखा हुआ हर शब्द अंगारे की तरह
चोट करता है.
उनकी ये कविता मुझे हर बार नए मायने सिखाती है. इस कविता को मैंने हमेशा अपने
सामने रखा और मेरे समाज कार्य के करियर में जब भी मैंने समस्याओ को समझ कर
लोगो की मदद करने की कोशिश की तब ये कविता हमेशा गुरु की तरह सामने थी.
सिर्फ यही नहीं, धूमिल की न जाने ऐसी कितनी कविताये है.
अपने मित्र चन्दन के ब्लॉग में एक कविता पढ़ कर मुझे अचानक ये कविता याद आ गयी.
धूमिल की याद दिलाने के लिए चन्दन को धन्यवाद्!
कोशिश करूँगा पोस्ट करता रहू !

शब्द किस तरह कविता बनते है उसे देखो,
अक्षरों के बीच
गिरे हुए आदमी को पढो,
क्या तुमने सुना है
की ये लोहे की आवाज है,
या मिटटी में गिरे हुए खून का रंग ?
लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो ,
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुह में लगाम है .
--- धूमिल