धूमिल कुछ ऐसे लोगो में से है जिनके द्वारा लिखा हुआ हर शब्द अंगारे की तरह
चोट करता है.
उनकी ये कविता मुझे हर बार नए मायने सिखाती है. इस कविता को मैंने हमेशा अपने
सामने रखा और मेरे समाज कार्य के करियर में जब भी मैंने समस्याओ को समझ कर
लोगो की मदद करने की कोशिश की तब ये कविता हमेशा गुरु की तरह सामने थी.
सिर्फ यही नहीं, धूमिल की न जाने ऐसी कितनी कविताये है.
अपने मित्र चन्दन के ब्लॉग में एक कविता पढ़ कर मुझे अचानक ये कविता याद आ गयी.
धूमिल की याद दिलाने के लिए चन्दन को धन्यवाद्!
कोशिश करूँगा पोस्ट करता रहू !
शब्द किस तरह कविता बनते है उसे देखो,
अक्षरों के बीच
गिरे हुए आदमी को पढो,
क्या तुमने सुना है
की ये लोहे की आवाज है,
या मिटटी में गिरे हुए खून का रंग ?
लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो ,
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुह में लगाम है .--- धूमिल
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