"You have your way. I have my way. As for the right way, the correct way, and the only way, it does not exist."
Friedrich Nietzsche

Friday, April 8, 2011

रवि प्रकाश

कल रात अचानक खाना खाते वक्त रुक गया. पता नहीं क्यों और कैसे रवि प्रकाश कि याद आ गयी. उसके बाद उसके जैसे बहुत से लोगो का चेहरा सामने घूमता रहा और सारी रात ठीक से सो नहीं पाया.
किसी तरह कई लोगो को अलविदा कह दिया लेकिन रवि प्रकाश जैसे चेहरे कभी अलग नहीं होते.

जब समाज कार्य के प्रथम वर्ष में पहली बार एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में फील्ड वर्क करने का मौका मिला तो बहुत उत्साह था. उतने ही उत्साह से वहाँ अमृतादास सर ने स्वागत किया. ये एक बिलकुल नयी दुनिया थी जहाँ खूबसूरत नन्ही आँखे बातें किया करती थी, और धीरे धीरे इस नयी दुनिया में बच्चे मुझे स्वीकार करने लगे. फिर एक दिन अमृता सर ने मुझे बुलाया और मुझे रवि प्रकाश नाम के एक बच्चे का केस वर्क करने को दिया. उन्होंने कहा,”बहुत प्यारा बच्चा है, और पढ़ने में बहुत तेज भी था मगर शायद सबसे अकेला है, इससे पहले कि वो खो जाये हमे कुछ करना होगा”

करीब १३-१४ साल का पतला दुबला बच्चा था रवि प्रकाश. पहली बार उससे स्कूल में मिला तो उसकी शैतान आँखे एक जगह ठहरती ही नहीं थी. मैंने जो थोड़ी बहुत सांकेतिक भाषा सीखी थी उससे कोशिश करता रहा उससे बात करने की लेकिन वो जब मेरी ओर देखता तो हँस देता. उसकी दुनिया में मेरी भाषा बहुत ही बचकानी थी. फिर भी हम दोस्त बन गए और मैंने उसे राज़ी कर लिया कि मैं उसके घर जाके उसकी माँ से मिलूं.

उसके घर गया तो पता चला कि पूरे घर में बस उसकी माँ और वो ही रहा करते है. दो मंजिलों में बना तंग कमरों और खतरनाक बनारसी सीढियों वाला अँधेरा सा घर जिसमे शायद बहुत सालों बाद कोई मेहमान आया था. उसकी माँ, जो बहुत बूढी और कमजोर लग रही थी, बहुत खुश हुई मेरे आने पर. उनसे ठीक से चला नहीं जा रहा था लेकिन किसी तरह मेरे लिए गुड और पानी लेके आई, मैंने रवि प्रकाश के बारे में बात कि तो उन्होंने बताया, “इसके पिताजी कपडे सिलते थे, बहुत मन्नतो के बाद भी भगवन ने कोई औलाद नहीं दी. हमारे गाँव में एक लड़की के साथ उसके किसी रिश्तेदार के सम्बन्ध थे तो ये बच्चा पैदा हुआ जिसे वो कही किसी अनाथालय में फेक रहे थे. तो हमने बहुत मिन्नत करी उनकी और रवि प्रकाश हमे मिल गया. लेकिन एक साल बाद पता चला हमे कि बच्चे में कुछ परेशानी है. बहुत इलाज कराया लेकिन कुछ नहीं कर पाए हम लोग. फिर भी इससे जादा प्यारा कोई नहीं था इसके पिताजी को. उनके मरने के बाद अब बस ये घर बचा है जिसके ऊपर रिश्तेदार आँखे गडाये बैठे है. रोज धमकी देते हैं. मैं तो अब शायद जादा दिन नहीं जी पाऊँगी लेकिन रवि प्रकाश का क्या होगा, वो लोग मार डालेंगे इसको”

मैं वहां से वापस होस्टल आया तो सोचता रहा कि क्या जवाब देना चाहिए था मुझे. लेकिन मेरे पास उस वक्त कोई जवाब नहीं था. जब रवि प्रकाश के बारे में पता लगाया तो पता चला कि उस इलाके के कुछ दुकानदार उसे अपनी दुकान में जानवरों की तरह काम कराते थे और बदले में उसे गुटखा खिलाते थे. इसी कारण अक्सर वो स्कूल से गायब रहता था. लेकिन अब वो उन दुकानों पे काम नहीं करता था, कहाँ जाता था किसी को नहीं पता, लेकिन रात होने तक घर वापस आ जाता था.

जब दूसरी बार उसके घर गया तो बहुत आवाज दी लेकिन कोई नहीं निकला. मैं अंदर गया और डरते डरते ऊपर वाली मंजिल पे चला गया. वहाँ उसकी माँ एक चारपाई पे पड़ी हुई थीं. दो दिन पहले सीढियों से गिर कर कमर कि हड्डी टूट गयी थी. फिर भी किसी तरह उन्होंने बात की मुझसे.
“अब जादा दिन नहीं हैं मेरे पास. अभी यही तो था रवि प्रकाश. कब से पानी मांग रही हूँ लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं. चला गया. आएगा अब रात में.”
लेकिन रवि प्रकाश थोड़ी देर के लिए आया, मुझे देख के इस बार मुस्कुराया भी नहीं. माँ से कुछ बात कि इशारे में, पानी दिया और चला गया. मुझे हैरत हुई कि इतनी जल्दी क्या बात हुई उन दोनों में. मैंने पूछा तो उन्होंने बताया,
“मैं तो माँ हू, मुझे जादा इशारों कि जरुरत नहीं पड़ती बच्चे से बात करने के लिए. झूठ बोंल के गया है कि नीचे खेलने जा रहा है, भगवान जाने कहाँ जाता है मेरा बच्चा, क्या करता है, कैसे रहेगा मेरे बिना, कौन समझेगा इसकी बाते,”

मेरे पास फिर कोई जवाब नहीं था. वापस आया, कई दिनों तक कोशिश की,कई लोगो से बात की, बहुत आश्वासन मिले और बहुत योजनाये बनी लेकिन अब परीक्षाये नजदीक आ गयी थी और फील्ड वर्क खत्म हो गया था. बहुत दिनों बाद मौका मिला जाने का. बहुत डरते डरते गया कि न जाने क्या खबर मिले. रवि प्रकाश ने स्कूल जाना बंद कर दिया था और उसके घर में ताला लगा था. उसकी माँ बहुत गंभीर हालत में अस्पताल में थी. वहाँ गया तो वो अचेत पड़ी थी और उनके रिश्तेदार मिले जो इस बात कि दुहाई दे रहे थे कि सारा खर्चा वही कर रहे है और रवि प्रकाश तो दिन रात आवारो कि तरह घूमता रहता है. मैंने उन्हें डराने कि कोशिश की. कहा कि रवि प्रकाश के साथ बहुत से लोग हैं और उसका पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए. लेकिन मुझे लगा नहीं कि कोई असर पड़ा मेरी धमकी का. अस्पताल से निकलते वक्त चौकीदार से रवि प्रकाश के बारे में पूछा तो उसने बताया, “बहुत निरीह बच्चा है साहब, रोज चुपचाप आता है और माँ के सामने बैठा रहता है फिर चुपचाप चला जाता है, उसको तो ये लोग खाने के लिए भी नहीं पूछते. ये औरत तो बचेगी नही, पता नही उसके बाद इस बच्चे का क्या करेंगे ये लोग.”

जवाब तो तब भी नहीं था मेरे पास. कई लोगो ने भरोसा दिलाया कि कुछ करेंगे लेकिन फिर पता नहीं वो कैसे नियम कानून थे जिसके चलते वो कुछ नही कर पाए. मुझे दिल्ली आना पड़ा, अमृतादास सर ने बहुत मुश्किलों का सामना किया और उन्हें भी स्कूल छोडना पड़ा. उसके बाद आज तक रवि प्रकाश का कुछ पता नहीं चला. कंहीं न कहीं मैं खुद को अपराधी मानता हूँ. कुछ और प्रयास करता तो शायद कुछ कर पाता उसके लिए. पता नहीं कहा होगा वो. कल वादा किया अपने आप से कि इस बार हिम्मत कर उसके घर जाऊंगा और पता लगाऊंगा उसका. लेकिन पता नहीं मुझे मौका मिलेगा कि नहीं उसे दुबारा देखने का.

न जाने ऐसे कितने चेहरे मिले मुझे जो आज तक नहीं भूलते. और मुझे पता नहीं कि क्या हुआ उनका. AIIMS में मिला वो १६ साल का लड़का अमित न जाने कहा होगा, बिहार से उसके ८० साल के दादाजी उसका इलाज करने आये थे. वो खुद करोल बाग में मजदूरी करते थे और सड़क के किनारे सोते थे, और ये लड़का सुबह से मरीजो की लाइन में लगा रहता था. पेशाब कि कोई गंभीर समस्या थी और हर वक्त उसकी पैंट भीगी रहती थी जिसे वो रस्सी से बाँध के रखता था. बहुत कोशिश के बाद उसके लिए दवाइयों का इंतजाम किया और वापसी का टिकट बनवाया. उसके बाद वो दुबारा नहीं मिला.

मुझे नहीं पता नहीं कैसर से लड़ती हुई प्यारी सी १२ साल कि बच्ची शुश्मिता कितने दिन और जी पाई होगी. जब उससे मिला तो कैंसर बिल्डिंग के सामने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई दर्द से तड़प रही थी. एक पैर में ऑपरेशन के बाद प्लास्टर लगा हुआ था, सर के बाल कीमोथेरपी के कारण बहुत कम बचे थे. दर्द का इंजेक्शन देने के लिए कोई डॉक्टर नहीं था. मैंने बात करके उसे समझाने की कोशिश की, कहा कि आँख बंद कर के लेटे रहे अभी डॉक्टर आ जायेंगे. दो मिनट बाद उस बच्ची ने दर्द से तडपते हुए आसमान की ओर हाथ फैला दिए. मैंने जब उसके सर पे हाथ फेरा और पूछा तो उसने धीरे से मेरे कानो में कहा,” भगवान कह रहे है कि अब बहुत हो गया चले आओ, बहुत दर्द हो रहा है”
बहुत मुश्किल से अपने आप को रोक पाया, उसके पिताजी जो पहले से रो रहे थे उनके सामने नहीं रोना चाहता था. मैंने अपनी लडखडाती आवाज संभाली और उससे कहा, “अच्छा ऐसा कह रहे है भगवान? रुको जरा मुझे भी तो बात करने दो.......हम्म..........अरे मुझसे से तो कुछ और कह रहे है. मुझसे कह रहे है कि अभी तुम्हे ठीक होके स्कूल जाना है, बहुत पढ़ना है, बड़े होके डॉक्टर बनना है, अभी जाने का टाइम नहीं है गुडिया, अभी डॉक्टर भईया को लेके आता हूँ मैं.”

इसके बाद मैं तेजी से अंदर भागा, आंसू पोछे, और किसी तरह एक डॉक्टर मिला, नींद का इंजेक्शन देके सुला दिया बच्ची को. पता चला कि उसका बचना नामुमकिन सा हैं, बस कुछ दिन टाला जा सकता है लेकिन बोन कैंसर फ़ैल चुका है.

ये सारे चेहरे जिंदगी का हिस्सा हैं.... बांद्रा के सीवर के बगल की झोपड़पट्टियों में बैठे हुए मैंने जो दुर्गन्ध महसूस की थी, वो भी शायद मेरे जीवन का हिस्सा है, शायद मेरी पहचान भी हैं. मैं कभी नहीं भूल सकता इसको और कभी नहीं भूलना चाहता. हाँ मैं ऐसे चेहरों से मिलना जरुर चाहता हूँ जिनकी जिंदगी में मैं इतनी मदद कर पाऊं कि मुझे उन्हें याद करते वक्त आत्मग्लानि ना हो.

कहीं ऐसा तो नहीं की तडपते हुए चेहरों से कहीं जादा संख्या में क्रूर और निष्ठुर चेहरे मौजूद हैं दुनिया में. और उससे भी कहीं जादा संख्या में मौजूद हैं बेफिक्र और स्वार्थी चेहरे. कहीं ऐसा तो नहीं की मेरे पास भी ये सभी चेहरे हैं जिन्हें लगा लेता हूँ मैं, अपनी सुविधानुसार !!!

4 comments:

  1. Vivek.....Mera Vivek....Mera sabsey pyara shishya Vivek.....

    ReplyDelete
  2. You made me cry..

    ReplyDelete
  3. Once again it's great to NOT read your Blog.... I still don't understand Hindi.... love S

    ReplyDelete
  4. Sahi kaha hum sb ke pass anek chehre hai, or hum apni suvidhaanusar koi na koi chehra laga letey,jis khubi se tumney ye sb likha hai, wo b to ek chehra hi hai!

    ReplyDelete