ताज़्ज़ुब है,
इतना वक़्त मैंने
खुद को सही साबित करने में क्यो लिया,
जबकी बीच बहस छोड़ कर
मैं दोपहर की नींद ले सकता था !
बहुत उदास हूँ
ये सोचकर भी,
की इतनी स्याही
नसीहतों को रंगने में क्यो खर्च की,
जबकी उससे
लिख सकता था खूबसूरत कवितायें
दुनिया के हर बच्चे के लिए !
इसलिये,
मैं अब हर दोपहर
सोना चाहता हूँ,
हर रात
लिखना चाहता हूँ !
- विवेक (24.04.19)
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