(हरिशंकर परसाई की कहानी)
एक शहर की बात है. शहर में गणेशोत्सव बड़े धूम से मनाया जाता है. प्रथा कुछ ऐसी चल गयी है की हर जाति के लोग अपने अलग गणेश जी रखते है. इस तरह ब्राम्हणों के अलग गणेश होते है, अग्रवालो के अलग, तेलियो के अलग, कुम्हारों के अलग. पचीस-तीस तरह के गणेशोत्सव होते है, और नौ-दस दिनों तक खूब भजन-कीर्तन, पूजा-स्तुति, आरती, गायन-वादन होते है. आखिरी दिन गणेश विसर्जन के लिए जो जुलुस निकलता है, उसमे सबसे आगे ब्राम्हणों के गणेश होते है.
इस साल ब्राम्हणों के गणेश जी का रथ उठने में जरा देर हो गयी. इसलिए तेलियो के गणेश जी आगे हो गए.
जब यह बात ब्राम्हणों को मालूम हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए.
बोले, “ तेलियो के गणेश की ऐसी-तैसी. हमारा गणेश आगे जायेगा.”
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