जिंदगी में
कहानियाँ थी.
खूबसूरत थी
तब तक
जब तक
सिर्फ कहानियाँ थी.
एक दिन मुझको क़त्ल किया
मेरी स्याही ने
जब रगों में दौड़ने लगी.
उस दिन मुझको बहका-बहका
और किस्सों का रंग बदलते
तुमने भी तो देखा होगा.
"You have your way. I have my way. As for the right way, the correct way, and the only way, it does not exist."
— Friedrich Nietzsche
— Friedrich Nietzsche
Tuesday, November 30, 2010
Thursday, November 25, 2010
सोवियत राष्ट्रपति कालिनिन के नाम एक १३ वर्षीय मजदूर बालक द्वारा १९३३ में लिखा गया पत्र
प्रिय दादाजी कालिनिन ...
मेरा परिवार बड़ा है, चार बच्चे हैं. हमारे पिता अब नहीं हैं, वे मजदूरो के लिए लड़ते हुए मारे गए थे ...
और मेरी माँ ... बीमार हैं. ....मैं बहुत पढ़ना चाहता हूँ, पर स्कूल नहीं जा सकता. मेरे पास पुराने जूते थे लेकिन अब वो इतने फट चुके हैं की कोई उनकी मरम्मत नहीं कर सकता. मेरी माँ बीमार हैं, हमारे पास न तो पैसा है न तो रोटी; पर मैं पढ़ना बहुत चाहता हूँ. ..... हमारे पास पढ़ने, पढ़ने और बस पढ़ने की जिम्मेदारी है. व्लादिमीर इल्यीच लेनिन ने यही कहा है. पर मुझे स्कूल जाना छोडना पड़ेगा. हमारा कोई भी रिश्तेदार नहीं हैं, कोई भी हमारी मदद नहीं कर सकता, इसलिए मुझे फैक्ट्री में काम करना पड़ेगा ताकि मेरा परिवार भूखो मरने से बच जाये. प्रिय दादाजी मैं १३ साल का हूँ, पढाई में अव्वल आता हूँ और मेरी कोई खराब रिपोर्ट नहीं है. मैं पाचवी कक्षा में पढता हूँ.....
Tuesday, November 23, 2010
तीसरी किताब
मध्य-प्रदेश से आते हुए ट्रेन में एक युवक को देखा, उसके पास तीन किताबे थी. दो रखी हुई थी बर्थ पर और एक वो सामने लेटा हुआ बड़ी तल्लीनता से पढ़ रहा था. रखी हुई किताबो का नाम नहीं दिख रहा था लेकिन जो वो पढ़ रहा था वो सामने था.
किताब का नाम था-
“हितोपदेश”
ये किताब ट्रेन और बसों की ‘बेस्ट सेलर’ है. आज तक मैंने कभी पढ़ी नहीं, खरीदने का दुस्साहस भी नहीं किया. मगर मैंने सोचा की अगर मुफ्त में मिल जाये तो आज जरा एक दो कहानियाँ पढ़ ही लू. लेकिन उसने मौका नहीं दिया, वो पढता रहा.
मैं भी अपनी किताब पढता रहा और सो गया.
मैं जब सुबह उठा तो देखा वो उसी तरह लेटे हुए कोई दूसरी किताब पढ़ रहा था.
मैंने नाम पढ़ने की कोशिश की,
लिखा था-
“बलात्कारी भूत” (कवर भी काफी शानदार था )
बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को रोका वरना उसके पैरों में गिर जाता.
पता नहीं ये रात वाली किताब का असर था या वाकई उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का कमाल.
बनारस आ गया, मैंने निकलते वक्त उसे अलविदा मुस्कान देने की सोची मगर उसने मेरी ओर नहीं देखा, वो अभी भी पढ़ रहा था.
मैं अब तक सोंच रहा हूँ की भला उसकी तीसरी किताब का क्या नाम रहा होगा ??
Sunday, November 21, 2010
जरा सी याद
कुछ लोगो के चले जाने का दुःख होता है,
लेकिन उससे जादा दुःख होता है तब ...
जब दुखी होने बैठता हूँ
और वो ठीक से याद नहीं आते !
भूल जाती है चेहरे की कोई खास लकीर,
और टुकडो में मिलता है पूरा शरीर,
वो एहसास भटकता है
जो उनको छू कर हुआ करता था,
फिर दुःख होता है,
लेकिन इस दुःख से भी मन नहीं भरता,
खुद पर,
खुद की बेपवाही पर गुस्सा आता हैं,
जाने कहाँ गिरा दी मैंने
वो जरा सी याद,
जो प्यार से रुला कर चली जाया करती थी,
दुःख तो आज भी होता है,
लेकिन उससे जादा दुःख होता है तब...
जब किसी पुरानी तस्वीर के साथ,
बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर
मैं दुखी होने बैठता हूँ,
और वो ठीक से याद नहीं आते !
लेकिन उससे जादा दुःख होता है तब ...
जब दुखी होने बैठता हूँ
और वो ठीक से याद नहीं आते !
भूल जाती है चेहरे की कोई खास लकीर,
और टुकडो में मिलता है पूरा शरीर,
वो एहसास भटकता है
जो उनको छू कर हुआ करता था,
फिर दुःख होता है,
लेकिन इस दुःख से भी मन नहीं भरता,
खुद पर,
खुद की बेपवाही पर गुस्सा आता हैं,
जाने कहाँ गिरा दी मैंने
वो जरा सी याद,
जो प्यार से रुला कर चली जाया करती थी,
दुःख तो आज भी होता है,
लेकिन उससे जादा दुःख होता है तब...
जब किसी पुरानी तस्वीर के साथ,
बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर
मैं दुखी होने बैठता हूँ,
और वो ठीक से याद नहीं आते !
Monday, November 15, 2010
सुर-असुर !
सही कहा तुमने,
मैं जन्म से हिंदू हूँ !
लेकिन कर्म से केवल मनुष्य,
तुम्हारे सारे रिवाज़
मेरी परिभाषा से अलग हैं.
और न जाने क्यों
ऐसा लगता है
की मैं बेहतर हूँ.
मंदिर जाता हूँ
वास्तुकला की प्रशंसा करता हूँ
भक्तिभाव और घंटे की ध्वनि से
परहेज भी नहीं परन्तु
श्रद्धा और आस्था का भ्रम भी नहीं.
खुद को कुचलती भीड़ पर हँसता हूँ
जी भर के कोसता हूँ.
रात्रि जागरण कर के
रामचरित मानस गा लेता हूँ.
लोग कहते है-
“बड़ा धार्मिक लड़का है”
लेकिन मैं नवरात्री में अंडे खा लेता हूँ.
चेखव, कृष्ण, विवेकानंद,
मार्क्स, गाँधी और ग़ालिब.
मेरे कमरे में सबके लिए जगह है.
लेकिन ‘कल्पना के किसी पुत्र’ के लिए
नहीं है दिल का कोई भी कोना.
अहमियत नहीं रखता मेरे लिए
किसी भी जगह
किसी भी मंदिर या मस्जिद का
होना या न होना.
हर फुर्सत में दोस्तों के साथ
गंगा की सीढियों पर सोता हूँ
चौराहों पर तकलीफ ढूढता हूँ
और बिना वजह रोता हूँ
शराब पीने के बाद
बिना समझे
किसी भी मुद्दे पर
कुछ भी बोंल देता हूँ.
परम, पूज्य, पुण्य, परमात्मा
सबके ढक्कन खोल देता हूँ.
फिर भी
सबको मिला के रखता हूँ.
हर रूप में ढल जाता हूँ
क्योकि
सही गलत का जादा फर्क नहीं करता
नैतिकता बड़ी लचीली है
और जरुरत के वक्त
नीयत हमेशा गीली है.
मुझे लगता है
अगर मैं जन्म से मुसलमान होता,
ईसाई होता या कुछ और,
या कुछ भी नहीं होता
तो भी ऐसा ही होता जैसा हूँ.
और तुम भी हमेशा तुम ही होते
हर परदे के पीछे.
हो सकता है हम दोनों
समाजीकरण की
सफलता और असफलता
के प्रयोग हों
इसलिए कभी कभी रौशनी में
तुम भी मुझे
सताते हुए कम
सताए हुए जादा दिखते हो
तुम भी इतने बुरे नहीं हो
अक्सर मुझे पसंद भी हो
लेकिन फिर भी
न जाने क्यों
ऐसा लगता है
की मैं ही बेहतर हूँ.
Saturday, November 13, 2010
“देवभक्ति”
(हरिशंकर परसाई की कहानी)
एक शहर की बात है. शहर में गणेशोत्सव बड़े धूम से मनाया जाता है. प्रथा कुछ ऐसी चल गयी है की हर जाति के लोग अपने अलग गणेश जी रखते है. इस तरह ब्राम्हणों के अलग गणेश होते है, अग्रवालो के अलग, तेलियो के अलग, कुम्हारों के अलग. पचीस-तीस तरह के गणेशोत्सव होते है, और नौ-दस दिनों तक खूब भजन-कीर्तन, पूजा-स्तुति, आरती, गायन-वादन होते है. आखिरी दिन गणेश विसर्जन के लिए जो जुलुस निकलता है, उसमे सबसे आगे ब्राम्हणों के गणेश होते है.
इस साल ब्राम्हणों के गणेश जी का रथ उठने में जरा देर हो गयी. इसलिए तेलियो के गणेश जी आगे हो गए.
जब यह बात ब्राम्हणों को मालूम हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए.
बोले, “ तेलियो के गणेश की ऐसी-तैसी. हमारा गणेश आगे जायेगा.”
एक शहर की बात है. शहर में गणेशोत्सव बड़े धूम से मनाया जाता है. प्रथा कुछ ऐसी चल गयी है की हर जाति के लोग अपने अलग गणेश जी रखते है. इस तरह ब्राम्हणों के अलग गणेश होते है, अग्रवालो के अलग, तेलियो के अलग, कुम्हारों के अलग. पचीस-तीस तरह के गणेशोत्सव होते है, और नौ-दस दिनों तक खूब भजन-कीर्तन, पूजा-स्तुति, आरती, गायन-वादन होते है. आखिरी दिन गणेश विसर्जन के लिए जो जुलुस निकलता है, उसमे सबसे आगे ब्राम्हणों के गणेश होते है.
इस साल ब्राम्हणों के गणेश जी का रथ उठने में जरा देर हो गयी. इसलिए तेलियो के गणेश जी आगे हो गए.
जब यह बात ब्राम्हणों को मालूम हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए.
बोले, “ तेलियो के गणेश की ऐसी-तैसी. हमारा गणेश आगे जायेगा.”
Friday, November 12, 2010
जॉन लेनन
“We're more popular than Jesus Christ now. I don't know which will go first. Rock and roll or Christianity.”
- Lennon
John Winston Ono Lennon, (9 October 1940 – 8 December 1980) was an English musician and singer-songwriter who rose to worldwide fame as one of the founding members of The Beatles and, with Paul McCartney, formed one of the most successful songwriting partnerships of the 20th century.
Lennon revealed a rebellious nature and acerbic wit in his music, his writing, his drawings, on film, and in interviews, and he became controversial through his peace activism. He moved to New York City in 1971, where his criticism of the Vietnam War resulted in a lengthy attempt by Richard Nixon's administration to deport him, while his songs were adapted as anthems by the anti-war movement. Lennon disengaged himself from the music business in 1975 to devote time to his family, but reemerged in 1980 with a new album, Double Fantasy. He was murdered three weeks after its release.
“Imagine all the people” by John Lennon
When asked about the song in one of his last interviews, Lennon declared "Imagine" to be as good as anything he had written with the Beatles. The song is one of three Lennon solo songs, along with "Instant Karma!" and "Give Peace a Chance", in the Rock and Roll Hall of Fame's 500 Songs that Shaped Rock and Roll. Rolling Stone ranked "Imagine" the 3rd greatest song of all time in their editorial The 500 Greatest Songs of All Time.
The lyrical content of "Imagine" was "just what John believed — that we are all one country, one world, one people. He wanted to get that idea out."
Imagine there's no Heaven
It's easy if you try
No hell below us
Above us only sky
Imagine all the people
Living for today
Imagine there's no countries
It isn't hard to do
Nothing to kill or die for
And no religion too
Imagine all the people
Living life in peace
You may say that I'm a dreamer
But I'm not the only one
I hope someday you'll join us
And the world will be as one
Imagine no possessions
I wonder if you can
No need for greed or hunger
A brotherhood of man
Imagine all the people
Sharing all the world
You may say that I'm a dreamer
But I'm not the only one
I hope someday you'll join us
And the world will live as one
GIVE PEACE A CHANCE by John Lennon
"Give Peace a Chance" is a 1969 single by the Plastic Ono Band that became an anthem of the American anti-war movement of the 1960s. The song was written during Lennon's ‘Bed-In’ honeymoon: when asked by a reporter what he was trying to achieve by staying in bed, Lennon answered spontaneously "All we are saying is give peace a chance"; Lennon liked the phrase and set it to music for the song.
The song quickly became the anthem of the anti Vietnam-war movement, and was sung by half a million demonstrators in Washington, D.C. at the Vietnam Moratorium Day, on 15 October 1969. They were led by the renowned folk singer Pete Seeger, who interspersed phrases like, "Are you listening, Nixon?" and "Are you listening, Agnew?", between the choruses of protesters singing, "All we are saying ... is give peace a chance".
Ev'rybody's talkin' 'bout
Bagism, Shagism, Dragism, Madism, Ragism, Tagism
This-ism, that-ism, ism ism ism
All we are saying is give peace a chance
All we are saying is give peace a chance
(C'mon)
Ev'rybody's talkin' 'bout
Minister, Sinister, Banisters and Canisters,
Bishops, Fishops, Rabbis, and Pop Eyes, Bye bye, Bye byes
All we are saying is give peace a chance
All we are saying is give peace a chance
(Let me tell you now)
Ev'rybody's talkin' 'bout
Revolution, Evolution, Masturbation, Flagellation, Regulation,
Integrations, mediations, United Nations, congratulations
All we are saying is give peace a chance
All we are saying is give peace a chance
Ev'rybody's talkin' 'bout
John and Yoko, Timmy Leary, Rosemary,
Tommy Smothers, Bobby Dylan, Tommy Cooper,
Derek Taylor, Norman Mailer, Alan Ginsberg, Hare Krishna
Hare Hare Krishna
All we are saying is give peace a chance
All we are saying is give peace a chance
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