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खुद को मरते देखना और
खुद को मारना
बहुत लंबी प्रक्रिया है,
और उससे भी लंबी है वो पुकार
जिसे शब्द नहीं मिलते।
अगर आप बचाना चाहते हैं मुझे
सिर्फ एक दिन में
तो बहुत कम बचूंगा मैं,
और उतना सा मैं
तस्वीरों से बाहर न आ पाउँगा।
रस्सी बन जाती है एक दिन में,
मगर उसके रेशे चिपकते हैं रोज
कई सालों तक बेआवाज,
इसलिये जल्दबाज़ी में
बचाने और बचने की कसमें
खाने से पहले,
उस सुरंग का रास्ता समझ लीजिए
जो बहुत लंबी है
बहुत गहरी है
बहुत अंधेरी है।
(सुशांत के लिए)
~ विवेक/ 16/06/2020
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