मैं हमेशा से बनना चाहता था,
तुम्हारे लिए
एक बड़ा सा पेड़।
इतना बड़ा की
तुम्हारी हर परेशानी
छोटी लगने लगे.
जब तुम्हे धूप लगे
मैं छाँव दे दूं,
भूख पर
चुपके से मीठे फल गिरा दूँ,
और प्यास पर
पत्तो में संजोई ओस.
सुना दूँ सबसे मीठी लोरी
गुजरती हुई हवाओं के मार्फ़त,
और सुला दूं
अपनी शाखों के झूले में,
ठीक उस कहानी के बाद
जिसमें मैं जिंदगी को
खूबसूरत सपने का सच होना
कह देता हूँ।
मैं जो चाहता हूँ,
वो हमेशा नहीँ होता
बिल्कुल वैसा ही,
और ये न होना
मेरा वजूद है तब तक,
जब तक तुम भूल न जाओ
ये कविता !
- विवेक 21.08.2018