सुख
एटीएम का वो परचा नहीं है
जो महीने की पहली तारीख को निकलता है।
सुख
वो घर भी नहीं
जो परदेस में बसाया हो।
सुख
धूप का वो टुकड़ा है
जो जाड़े की दोपहरी में
बाबा के साथ सोते हुए
उनकी शाल के छेद से आकर
मेरी पीठ सहलाता था।
और जिन्दगी
इक तलाश है,
उसी धूप के टुकड़े की।