Tuesday, November 23, 2010

तीसरी किताब


मध्य-प्रदेश से आते हुए ट्रेन में एक युवक को देखा, उसके पास तीन किताबे थी. दो रखी हुई थी बर्थ पर और एक वो सामने लेटा हुआ बड़ी तल्लीनता से पढ़ रहा था. रखी हुई किताबो का नाम नहीं दिख रहा था लेकिन जो वो पढ़ रहा था वो सामने था.
किताब का नाम था-
“हितोपदेश”
ये किताब ट्रेन और बसों की ‘बेस्ट सेलर’ है. आज तक मैंने कभी पढ़ी नहीं, खरीदने का दुस्साहस भी नहीं किया. मगर मैंने सोचा की अगर मुफ्त में मिल जाये तो आज जरा एक दो कहानियाँ पढ़ ही लू. लेकिन उसने मौका नहीं दिया, वो पढता रहा.
मैं भी अपनी किताब पढता रहा और सो गया.
मैं जब सुबह उठा तो देखा वो उसी तरह लेटे हुए कोई दूसरी किताब पढ़ रहा था.
मैंने नाम पढ़ने की कोशिश की,
लिखा था-
“बलात्कारी भूत” (कवर भी काफी शानदार था )
बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को रोका वरना उसके पैरों में गिर जाता.
पता नहीं ये रात वाली किताब का असर था या वाकई उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का कमाल.
बनारस आ गया, मैंने निकलते वक्त उसे अलविदा मुस्कान देने की सोची मगर उसने मेरी ओर नहीं देखा, वो अभी भी पढ़ रहा था.
मैं अब तक सोंच रहा हूँ की भला उसकी तीसरी किताब का क्या नाम रहा होगा ??

1 comment:

  1. Now.......... we have the curiosity to know the name of the 3rd book......
    Kaash........apne puch liya hota

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