Tuesday, August 31, 2010

कितनी तन्हाइयां !!!!

ये सड़क और मैं,

जिस पे तुम थे कभी,

और मेरे साथ थीं,

कितनी परछाइयाँ.



प्याली ये चाय की,

इसमें डूबी हुई,

कितनी मासूम थीं,

दिल की गहराइयाँ.



आज फिर रात में,

फिर किसी बात में,

तुम मिले और मिलीं,

कितनी तन्हाइयां.

3 comments:

  1. Last para touched my heart..... this happens with me at most of my nights....... thanks for sharing a nice post

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