Tuesday, August 31, 2010

कितनी तन्हाइयां !!!!

ये सड़क और मैं,

जिस पे तुम थे कभी,

और मेरे साथ थीं,

कितनी परछाइयाँ.



प्याली ये चाय की,

इसमें डूबी हुई,

कितनी मासूम थीं,

दिल की गहराइयाँ.



आज फिर रात में,

फिर किसी बात में,

तुम मिले और मिलीं,

कितनी तन्हाइयां.

Sunday, August 8, 2010

मुल्ला नसीरुद्दीन


मुल्ला नसीरुद्दीन का नाम मैंने ओशो की कहानियो में सुना था और बहुत मजे लेके पढता था. लेकिन कभी मिला नहीं था. कुछ दिन पहले मुझे वाराणसी से १७ किलोमीटर दूर एक गांव में मुल्ला जी मिले और ये कही से कम दिलचस्प नहीं थे.
ये तस्वीर मैंने ही खीची और ये बता सकता हू की इन चार लोगो में से सबसे अमीर ये जमीन पे बैठे मुल्ला जी है. ये जमीन इन्ही की है और अभी कुछ दिन पहले करीब २० - २२ लाख नगद लेके इन्होने अपनी एक जमीन का सौदा किया है. जब इनसे मिला तो यकीं नहीं हुआ..तब ये मुह में ५०२ पताका बीडी लेके खेत में इसी रूप में काम कर रहे थे.
मुल्ला जी के पास ऐसे ८ पैक्स मसल्स है की गजिनी भी हथियार डाल दे. बात करते हुए एक मिनट में दो कहानिया और तीन मुहावरे पढ़ देते है, गजब के दार्शनिक भी है. अफ़सोस इनसे जादा देर बात नहीं हो पाई क्योकि इनका एक जिद्दी मुर्गा भी है जो इनकी बहु के ऊपर हमला कर रहा था और जब मुल्ला जी डंडा लेके उसके पीछे भागे तब जाके माना.
मुल्ला जी के पोते से भी मिला..४ साल का प्यारा बच्चा बकरियों के साथ खेल रहा था. उसका नाम पूछा तो पास खड़े एक लड़के ने कहा,"साईकिल"
मैंने कहा, 'ये कैसा नाम है किसने रखा?"
"इसके अब्बा ने, वो जो खेत में काम कर रहे है"
"उनका नाम क्या है? मोटर-साईकिल?"
'नहीं, उनका नाम तो अहमद है"
बात मेरी समझ में नहीं आई तो जाते जाते मुल्ला नसीरुद्दीन से मैंने पूछ ही लिया,
"ये इस प्यारे से बच्चे का नाम साईकिल किसने रख दिया?"
इतने पर मुल्ला जी यो भड़के की पूछो नहीं,
"किस हरामजादे ने बताया आपको इसका नाम?"
मैंने उस बड़े लड़के की तरफ इशारा करना चाहा लेकिन वो पहले ही भाग चूका था.
डरते डरते मैंने कहा, "जी मैंने तो बच्चे से भी पूछा था, वो भी यही नाम बता रहा था."
इसपर मुल्ला जी थोडा नरम होके बोले,
"इसका नाम शकील है, शकील अहमद !!! ये साले गाव के लड़के मजाक में नाम बिगाड़ते है."

तो मैं इस तरह सस्ते में ही छूट गया,
उम्मीद है मुल्ला नसीरुद्दीन से फिर मुलाकात होगी !!

Thursday, August 5, 2010

दाता की क्या जात ???

पिछले शनिवार एक अजीब और मजेदार अनुभव हुआ,
कनाट प्लेस पर रात के ९ बजे मैं ऑटो की राह देख रहा था की तभी एक बूढी माँ मेरे पास आई और बोली, “ बेटा तुम करोड़पति हो कुछ पैसे दे दो खाने को , भूख लगी है”
समाज कार्य का ये भी एक उसूल है की जहा तक हो पैसे की मदद करने से बचना चाहिए लेकिन ५ मिनट पहले मुहे बड़ी जोरो की भूख लगी थी और बड़ी मुश्किल से सस्ता रेस्तौरां खोज कर मैं खाना खा के आया था तो मुझे लगा की मैं अगर आज २० रूपये दे दू तो कोई बड़ा अपराध नहीं है.

लेकिन आदतानुसार पैसे देने के पहले मैंने उस बूढी माँ से और भी बाते की.
“कहा से आई हो?”
“करोल बाग से”
“क्यों?”
“मेरे घुटने में दर्द है यह सुचेता कृपलानी हॉस्पिटल में फ्री में इलाज होता है”
“वापस कैसे जाओगी?”
“बस से”
“किराया?”
“बस वाला नहीं लेता”
“कुछ काम-धाम क्यों नहीं करती पैसे मांगने के बदले.”
“बर्तन साफ़ करती थी मगर वह पैसे नहीं देते थे”
“घर में कौन कौन है “
“कोई नहीं, पंडित जी मर गए और कोई बच्चा नहीं है”
“कितने दिन से मांग के खा रही हो?”
“सात साल से”
“आगे कैसे चलेगा काम ?”
“इसी तरह मांग के “
“जब शरीर इस लायक नहीं होगा की मांगने आ सको सड़क तक ...फिर क्या करोगी?”
“मर जाउंगी महक कर और क्या”
“अच्छा एक बात बताओ अम्मा”
“बेटा तुम करोड़पति हो पैसे दे दो”
“अम्मा मैं करोडपति नहीं हू, लेकिन पैसे दे दूँगा एक और बात का जवाब दो”
“बेटा पैसे दो नहीं तो मैं जाऊ दूसरे के पास मांगने?”
“अरे मैंने बोला है तो मैं दूँगा परेशां मत हो.....तुम मुझे ये बताओ अम्मा की आज तक कभी किसी भी संस्था ने तुम्हारी मदद करने की कोशिश नहीं की? वह जहा बूढ़े लोग साथ रहते है? इतने सालो में कोई तो आया होगा मदद करने, सरकार ने कई सेंटर खोले है लोगो की मदद करने के लिए वह क्यों नहीं गयी ?”
“हा पता है, लेकिन वहा नहीं रहूंगी मैं”
“क्यों किसी ने तुम्हारी मदद करने की कोशिश नहीं की ? या वह अच्छा व्यवहार नहीं करते ?”
“नहीं ऐसी बात नहीं है, कई बार लोगो ने मुझे रखने की कोशिश की मगर वहा नहीं रह सकती मैं”
“क्यों नहीं रह सकती?
“वह सब चमार सियार साथ में रहते है”
“मतलब??”
“अरे मैं पंडित हू ना, कैसे रह सकती हू मैं किसी चमार के साथ”यहाँ थोड़ी देर के लिए संभालना पड़ा पाने आप को इस बात को पचाने के लिए. इसके बाद मैंने अम्मा से पूछा,
“अच्छा तो आप पंडित हैं और वह सब जात के लोग एक साथ रहते है तो इसलिए आप उनके साथ नहीं रह सकती”
“हाँ”
“धर्म खत्म हो जायेगा?”
“हाँ , बेटा तुम पैसे दोगे की नहीं?”
“मैं तो दूँगा लेकिन अगर एक चमार पैसे देगा तो आप लेंगी?”
“ बिलकुल नहीं?”
“ओह ....लेकिन मैं भी तो एक चमार हू अम्मा...अब मैं कैसे दू पैसे आपको, आपका धर्म खतम हो जायेगा”
“नहीं तुम चमार नहीं हो .”
“ अब चाहे मानो या न मानो..,,मैं चमार ही हू. आपको मुझसे पैसे नहीं लेने चाहिए”
“हम तो देख के पहचान लेते है, तुम चमार नहीं हो”
“पैसे लेने है तो ले लो अम्मा लेकिन इतना जान लो की एक चमार के हाथो से पैसे ले रही हो तुम्हारा धर्म खत्म हो जायेगा”

इतना सुनने के बाद बूढी अम्मा ने मेरे हाथ से दस रु. का नोट खीच लिया और चल पड़ी...लेकिन चलते चलते बोली,
“मुझे पता है तुम चमार नहीं हो......तुम पंडित हो”