Sunday, April 22, 2012

ज़िंदगी है, मैं नहीं हूँ !


सुबह बुलाने से पहले बुलाओ धूप मुझे,
रौशनी दो, न कहो मुझको सितारा कोई.
मेरी आवाज़ सुनो लौटती ख़ामोशी में,
डूबने दो मुझे मत खीचो किनारा कोई.
ज़िंदगी है, मैं नहीं हूँ कोई लिबास है बस.
जो मेरा है वो खुद को खोने की तलाश है बस.

हर सही का हर गलत का बेरहम क़त्ल करो,
मुझे सवाल बनाओ नया जवाब न दो.
कौन शमशान का रास्ता है कौन ज़न्नत का,
मुझे बनाने दो मुझको कोई हिसाब न दो.
ज़िंदगी है, मैं नहीं हूँ कोई लिबास है बस.
जो मेरा है वो खुद को खोने की तलाश है बस.

प्यार में फ़र्ज़ है कसमें है और सलाखें हैं,
किसे इल्ज़ाम बताऊँ और किसे माफ करूँ.
गर्द पुश्तैनी मिली हैं सजोये रखने को,
मैं अपना चेहरा बनाऊँ या आईना साफ़ करूँ.
ज़िंदगी है, मैं नहीं हूँ कोई लिबास है बस.
जो मेरा है वो खुद को खोने की तलाश है बस.

- विवेक

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