Thursday, August 15, 2019

दुकान पर मिठाई खरीदते वक़्त,
मेरी तरह शायद सब यही प्रार्थना कर रहे थे,
की खोया नकली तो होगा ही,
बस ज़्यादा जहरीला न हो,
वैसे भी ज्यादा खरीद न पाएंगे.
वापस लौटते वक़्त मख्खियों से
बचाते हुए, कीचड़ से बचते हुए,
घर पहुँच जाना,
आज की उपलब्धि है.
मजदूरी के दो दिनों के बीच,
फँसा हुआ ये दिन,
त्योहार कहे जाने के लिए तड़प रहा है,
लेकिन हम इस झाँसे में नहीं आयेंगे,
हमें गणित आता है,
तनख्वाह आने के पहले,
हर रोज की लक्ष्मण रेखा,
हमनें खींच रखी है,
खुशी से झूमते वक़्त
हमारा पैर
गलती से भी इसके बाहर न जायेगा.
हम उल्टा त्योहार को ललचा देंगे,
ऐसा स्वांग रचायेंगे की
सबको यकीन हो जाये,
हमने चतुराई से
जीना सीख लिया है !!!

- विवेक (15.08.19)